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"फिर मुझे नरगिसी आँखों की महक पाने दो / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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क्या हुआ मिल गयीं नज़रें भी जो अनजाने दो!
 
क्या हुआ मिल गयीं नज़रें भी जो अनजाने दो!
  
जब्त होता नहीं मांझी अब उठा लो लंगर  
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नाव को फिर किसी तूफ़ान से टकराने दो
 
नाव को फिर किसी तूफ़ान से टकराने दो
  

02:30, 2 जुलाई 2011 का अवतरण


फिर मुझे नरगिसी आँखों की महक पाने दो
फिर बुलाते हैं छलकते हुए पैमाने दो

क्या पता, फिर कभी हम मिल भी सकेंगे कि नहीं
आज की रात तो आँखों में गुज़र जाने दो

और भी हैं कई मज़बूरियाँ, सँभल ऐ दिल!
क्या हुआ मिल गयीं नज़रें भी जो अनजाने दो!

जब्त होता नहीं माँझी अब उठा लो लंगर
नाव को फिर किसी तूफ़ान से टकराने दो

रंग उनका भी बदलता नज़र आयेगा, गुलाब!
थोड़ा इन प्यार की आहों में असर आने दो