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"फिर से / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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धीरे धीरे उतरी है बाढ़
 
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फिर उभरी आ रही हैं मेड़ें
 
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खुले आ रहे हैं खेत घर द्वार
 
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फिर से मसूड़ों में उग रही है दाँत की पाँत ।
 
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दह गए थे धान के खेत
 
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घरों में भरा था बाढ़ का पानी
 
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यहाँ से वहाँ तक बस बची थी पाँक
 
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पता नहीं कौन-सी कोख में
 
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बचा हुआ जीवन
 
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फिर से फेंकता है कंछा
 
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फिर से अपनी ज़मीन पर लौट रहे हैं लोग-बाग
 
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लौट रहे हैं पशु-पक्षी
 
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लौट रहा है सूर्य
 
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लौटा आ रहा है सारा संसार
 
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इस प्रलय के बाद ।
 
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13:11, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

धीरे धीरे उतरी है बाढ़
फिर उभरी आ रही हैं मेड़ें
खुले आ रहे हैं खेत घर द्वार
फिर से मसूड़ों में उग रही है दाँत की पाँत ।

दह गए थे धान के खेत
घरों में भरा था बाढ़ का पानी
यहाँ से वहाँ तक बस बची थी पाँक

पता नहीं कौन-सी कोख में
बचा हुआ जीवन
फिर से फेंकता है कंछा
फिर से अपनी ज़मीन पर लौट रहे हैं लोग-बाग
लौट रहे हैं पशु-पक्षी
लौट रहा है सूर्य
लौटा आ रहा है सारा संसार
इस प्रलय के बाद ।