भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फिर ‘आरज़ू’ को दर से उठा, पहले यह बता / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरज़ू लखनवी }} {{KKCatGhazal}} <poem> फिर ‘आरजू’ को दर से उठा, प...)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
फिर ‘आरजू’ को दर से उठा, पहले यह बता।
 
फिर ‘आरजू’ को दर से उठा, पहले यह बता।
 
आखिर ग़रीब जाये कहाँ और कहाँ रहे॥
 
आखिर ग़रीब जाये कहाँ और कहाँ रहे॥
 
 
---    ---    ---
 
---    ---    ---
 
 
था शौके़दीद ताब-ए-आदाबे-बज़्मेनाज़।
 
था शौके़दीद ताब-ए-आदाबे-बज़्मेनाज़।
 
यानी बचा-बचा के नज़र देखते रहे॥
 
यानी बचा-बचा के नज़र देखते रहे॥
पंक्ति 15: पंक्ति 13:
 
अहले-क़फ़स का ख़ौफ़ज़दा शौक़ क्या कहूँ?
 
अहले-क़फ़स का ख़ौफ़ज़दा शौक़ क्या कहूँ?
 
सूएचमन समेट के पर देखते रहे॥  
 
सूएचमन समेट के पर देखते रहे॥  
 
 
</poem>
 
</poem>

00:23, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

फिर ‘आरजू’ को दर से उठा, पहले यह बता।
आखिर ग़रीब जाये कहाँ और कहाँ रहे॥
--- --- ---
था शौके़दीद ताब-ए-आदाबे-बज़्मेनाज़।
यानी बचा-बचा के नज़र देखते रहे॥

अहले-क़फ़स का ख़ौफ़ज़दा शौक़ क्या कहूँ?
सूएचमन समेट के पर देखते रहे॥