भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फिसल रही चांदनी / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
नाच रही, कूद रही, उछल रही चाँदनी
 
नाच रही, कूद रही, उछल रही चाँदनी
 
वो देखो, सामने
 
वो देखो, सामने
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चांदनी
+
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी
  
 
(१९७६)  
 
(१९७६)  
 
</poem>
 
</poem>

11:56, 18 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी
नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही
जम रही, घुल रही, पिघल रही चाँदनी
पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर--
चमक रही, दमक रही, मचल रही चाँदनी
दूर उधर, बुर्जों पर उछल रही चाँदनी

आँगन में, दूबों पर गिर पड़ी--
अब मगर किस कदर संभल रही चाँदनी
पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर
नाच रही, कूद रही, उछल रही चाँदनी
वो देखो, सामने
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी

(१९७६)