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"फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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खुद-ब-खुद ग़ज़लों में अफ़साने तुम्हारे आ गए  
 
खुद-ब-खुद ग़ज़लों में अफ़साने तुम्हारे आ गए  
  
रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले
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हम सिखाने पर तुले थे रूह को आदाब दिल  
 
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए  
 
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए  
  

17:23, 15 नवम्बर 2010 का अवतरण

फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए
खुद-ब-खुद ग़ज़लों में अफ़साने तुम्हारे आ गए

हम सिखाने पर तुले थे रूह को आदाब ए दिल
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए

आँसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने फ़स्ल ये
क्या तअज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए

हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए

उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए

मैंने मन की बात ’श्रद्धा’ ज्यों की त्यों रक्खी मगर
लफ्ज़ में जाने कहां से ये शरारे आ गए