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"फूल हैं अग्नि के खिले हर सू / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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रौशनी की महक बहे हर सू।
 
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आसमाँ सी ज़मीं दिखे हर सू।
 
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दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू।
 
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वो दबे पाँव आज आए हैं,
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एक आहट सी दिल सुने हर सू।
 
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12:40, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

फूल हैं अग्नि के खिले हर सू।
रौशनी की महक बहे हर सू।

यूँ बिछे आज आइने हर सू।
आसमाँ सी ज़मीं दिखे हर सू।
 
लौट कर मायके से वो आये,
दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू।

वो दबे पाँव आज आये हैं,
एक आहट सी दिल सुने हर सू।

दूसरों के तले उजाला कर,
ये अँधेरा भी अब मिटे हर सू।

नाम दीपक का हो रहा ‘सज्जन’,
तन मगर तेल का जले हर सू।