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बंगाल का दुर्भिक्ष / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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बंगाल का दुर्भिक्ष
(यथार्थ के आग्रह का प्रदर्शन)

क्या बीत रही,
उससे पूछो
जिसने बच्चे ही बेच दिये।
और बेची जमीन बेची,
पेट के लिये सब कर्म किये।
होटल के आगे कुत्ता-सा,
टुकड़ा पाने को खड़ा रहा,
‘दरवाजे से हट बे नंगे’
जिसको सेठों ने यहीं कहा,
फुटपाथ पर गिरा चक्कर खा
तड़फड़ा मर गया आखिर जो,
बंगाल सह रहा कितना?
उसके शव पंजर से पूछो?
(बंगाल का दुर्भिक्ष कविता का अंश)