भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बखिया / रोसारियो त्रोंकोसो
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:57, 4 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रोसारियो त्रोंकोसो |अनुवादक=पूज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
यहाँ कपड़ों को रफ़ू किया जाता है
लम्बे-लम्बे दिनों को
मोड़ कर की जाती है तुरपाई
जिनमे फैल जाती है परछाई
कोई स्वर भी नही जिन दिनों मे
और लगता है बोझिल हर मिनट।
हथेली पर काढ़ा जाता है
कशीदे से नाम का पहला अक्षर
यादों मे सिले जाते हैं
कई चीज़ों के नाम
कि कहीं उधड़ ना जाए
अदृश्य विस्मृति की बखिया।
सन्दर डिज़ाइन के पीछे
भद्दे पैबन्द से
अनैतिक रहस्य हों जैसे!
बनाया जाता है वस्त्रों को सुदृढ़
यदि घिस चुका हो महीन उत्साह
और पुनः ताग दिया जाता है झूठ को
किसी बनावटी चैन से।
यहाँ दुरुस्त की जाती है कमर की नाप
और बाँहों की लम्बाई
पूरे रूखेपन से,
हर देह की
इच्छाओं को कतरते हुए।
मूल स्पानी भाषा से पूजा अनिल द्वारा अनुदित