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बचपन बेशक जाता लेकिन कुछ नादानी रह जाती / सोनरूपा विशाल

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बचपन बेशक जाता लेकिन कुछ नादानी रह जाती
बीत गये लम्हों की मुझ पर एक निशानी रह जाती

मेरे इन हाथों में तुम गर अपना हाथ नहीं देते
मुझमें कितना प्यार है मैं इससे अनजानी रह जाती

एक सबब उससे मिलने का ये भी तो हो सकता था
काश कि' इक दूजे को कोई बात बतानी रह जाती

सच्चाई थी तल्ख़ बहुत मेरी सपनीली दुनिया से
कैसे मुझमें बाक़ी सपनों वाली रानी रह जाती

इतनी दुनिया जान चुके हम फिर भी अक्सर लगता है
रोज़ सुबह पर्दा हटने पर कुछ हैरानी रह जाती

बेशक़ तुम ख़ुश रहते अपनी दुनिया में लेकिन फिर भी
थोड़ी सी तो मेरे बिन तुममें वीरानी रह जाती

कड़वाहट जब घुली हुई है लोगों के मन में तो 'रूप'
कैसे लोगों की मिश्री सी बोली बानी रह जाती