भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचपन में मैं रोता था / जगदीश रावतानी आनंदम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बचपन में मैं रोता था
खूब चिल्ला-चिल्ला कर रोता था
माँ-बाप, चाचा-चची, भाई-बहन
सबका खूब प्यार हासिल करता था
हाँ, मैं जानबूझ कर रोता था
अब भी मैं रोता हूँ
पर ये देखता हूँ किसी ने देखा तो नहीं