भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचपन - 9 / हरबिन्दर सिंह गिल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:16, 2 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बचपन और विचारों में
एक गहन सम्बन्ध है
ये विचार ही
जीवन का आधार है।
जो कभी भी एका-एक नहीं बनते।
ये बनते हैं
माँ-बाप के व्यक्तित्व की खुशबू से।
ये बनते हैं
दोस्ती के सच्चाई की मिठास से।
ये बनते हैं
स्कूल के अनुशासन के बंधनों से
ये बनते हैं
सहपाठियों के अपनेपन के लगाव से
ये बनते हैं
खेल मैदानों में आपसी मेल जोल के स्वाद से।
ये बनते हैं
रूचि के अंतराल में छिपे रत्नों से।
ये बनते हैं
स्वप्नों की दुनियाँ में घटित घटनाओं से
ये बनते हैं
ठोकरों की दर्द में छिपे दृढ निश्चय से
ये बनते हैं
अपने मस्तिष्क के अंदर उभरती किताब से।