भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बड़ा याद आता है बन के प्रवासी / शार्दुला नोगजा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=शार्दुला नोगजा
 
|रचनाकार=शार्दुला नोगजा
 +
|अनुवादक=
 +
|संग्रह=
 
}}
 
}}
<poem>पेड़ों के झुरमुट से छन के जो आती
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
पेड़ों के झुरमुट से छन के जो आती
 
धवल धूप क्या याद मुझ को दिलाती
 
धवल धूप क्या याद मुझ को दिलाती
 
हरे खेतों की जो मड़ैया से जाता
 
हरे खेतों की जो मड़ैया से जाता
पंक्ति 16: पंक्ति 20:
 
"किसी ने निकाला जो देना है बायना?"
 
"किसी ने निकाला जो देना है बायना?"
 
"अभी लीपा है घर!", उफ! बड़के भईया
 
"अभी लीपा है घर!", उफ! बड़के भईया
चिल्ला रहे पर्स खोंसे रुपैय
+
चिल्ला रहे पर्स खोंसे रुपैया
  
 
आँधी में दादी हैं छ्प्पर जुड़ातीं
 
आँधी में दादी हैं छ्प्पर जुड़ातीं
पंक्ति 27: पंक्ति 31:
  
 
०९ अक्तूबर ०८
 
०९ अक्तूबर ०८
 
 
</poem>
 
</poem>

14:19, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

पेड़ों के झुरमुट से छन के जो आती
धवल धूप क्या याद मुझ को दिलाती
हरे खेतों की जो मड़ैया से जाता
थका-हारा राही मधुर गीत गाता

चूड़ा-दही-खाजा और कुछ बराती
अनब्याही दीदी मधुर सुर में गातीं
अभी दाई गोबर की थपली थपेगी
माँ भंसाघर में जा पूये तलेगी

सिल-बट्टे पे चटनी पीसे सुनयना
"किसी ने निकाला जो देना है बायना?"
"अभी लीपा है घर!", उफ! बड़के भईया
चिल्ला रहे पर्स खोंसे रुपैया

आँधी में दादी हैं छ्प्पर जुड़ातीं
भागे हम झटपट गिरें आम गाछी
वो मामू का तगड़ा कंधा सुहाना
जिस पे था झूला नम्बर से खाना।

बड़ा याद आता है बन के प्रवासी
नमक-तेल-मिर्ची और रोटी बासी।

०९ अक्तूबर ०८