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बड़ी गर्दिश में तारे थे, तुम्हारे भी हमारे भी / हस्तीमल 'हस्ती'

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बड़ी गर्दिश में तारे थे, तुम्हारे भी हमारे भी ।
अटल फिर भी इरादे थे, तुम्हारे भी हमारे भी ।

हमारी ग़लतियों ने उसकी आमद रोक दी वरना,
शजर पर फल तो आते थे, तुम्हारे भी हमारे भी ।

हमें ये याद रखना है बसेरा है जहाँ सच का,
उसी नगरी से नाते थे, तुम्हारे भी हमारे भी ।

सिरे से भूल बैठे हैं उसे हम दोनों ‘हस्ती' जी,
क़दम जिसने सँभाले थे, तुम्हारे भी हमारे भी ।

शहादत माँगता था वक़्त तो हमसे भी ‘हस्ती’ जी,
मगर लब पर बहाने थे, तुम्हारे भी हमारे भी ।