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बड़ भागिनी रूप की रासि प्रिये / चिरंजीव

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बड़ भागिनी रूप की रासि प्रिये ,
अनरीति हिये ते बहाइये जू ।
अब प्रीति के पँथ महानिधि मेँ ,
अबला अपनो मन लाइये जू ।
चिरजीवी तुम्हैं कर जोरे कहै ,
जनि लाड़िले का बिसराइये जू ।
इन नैन के बानन मारयो जिन्हैँ
तिन्हैँ रूप सुधा सोँ जियाइये जू ।

चिरंजीव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।