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बतकही / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

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की कहियों देशोॅ के आबेॅ होलोॅ छै की हाल ?
शासन-सत्ता के चालोॅ में जनता छै बेहाल,
रक्षक-भक्षक बनी गेलोॅ छै रोजे खेलै खेल,
भाय-भाय में एैन्होॅ होलै नै छै कहियो मेल,
टूटलै सब जनता के सपना हाल बड़ी बदहाल,
की कहियों देशोॅ के आबेॅ, होलौॅ छै की हाल ?

कानून आरो नियम के पालबोॅ आबेॅ होलै सपना,
जय बोलोॅ अपराधोॅ के सूझै छै आबेॅ कुछुवे ना।
टाका मोल पर न्याय बिकै छै बिकै छै पतवार,
उलटे बोलो तेॅ लटकाबै छै गल्ला पर तलवार।
कानै छै जनता रोटी लेॅ ऊ छै पूरे मालामाल,
की कहियों देशोॅ के आबेॅ होलोॅ छै की हाल ?

बिना काम मेहनत के लोगें देखै खाली सपना,
पैसा पर डिगरी बिकै छै बिकै पाक तमन्ना।
गाँव-समाज के होलोॅ छै एैन्होॅ हाल निराला,
बापे-बेटा साथ मिली केॅ रोज पियै छै हाला।
जे छेलै सच में आपनोॅ बनलोॅ छै ऊ काल,
की कहियों देशोॅ के आबेॅ होलोॅ छै की हाल ?

सच दहेज छै समाज रो मानव लेली काल।
तहियोॅ नै टुटै देखोॅ ई दुख के मायाजाल,
बापें बेची देलकै अपना केॅ तहियों नै पूरलै आस,
बाबुल के अंगना में घूमी ऐलै देखोॅ बेटी के लाश।
गली-गली कानै छै बेटी, कोंटा कानै काल कराल
की कहियों देशोॅ ़के आबेॅ, होलौ छै की हाल ?