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"बनारसी साड़ी / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: कवि-सम्मेलन के लए बन्यौ अचानक प्लान । काकी के बिछुआ बजे, खड़े है ग…)
 
 
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कवि-सम्मेलन के लए बन्यौ अचानक प्लान  । काकी के बिछुआ बजे, खड़े है गए कान ॥
 
कवि-सम्मेलन के लए बन्यौ अचानक प्लान  । काकी के बिछुआ बजे, खड़े है गए कान ॥
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खड़े है गए कान, 'रहस्य छुपाय रहे हो' । सब जानूँ मैं, आज बनारस जाय रहे हो ॥
 
खड़े है गए कान, 'रहस्य छुपाय रहे हो' । सब जानूँ मैं, आज बनारस जाय रहे हो ॥
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'काका' बनिके व्यर्थ थुकायो जग में तुमने । कबहु बनारस की साड़ी नहिं बांधी हमने  ॥
 
'काका' बनिके व्यर्थ थुकायो जग में तुमने । कबहु बनारस की साड़ी नहिं बांधी हमने  ॥
 
 
 
 
 
 
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हे भगवन, सौगन्ध मैं आज दिवाऊं तोहि । कवि-पत्नी मत बनइयो, काहु जनम में मोहि ॥
 
हे भगवन, सौगन्ध मैं आज दिवाऊं तोहि । कवि-पत्नी मत बनइयो, काहु जनम में मोहि ॥
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काहु जनम में मोहि, रखें मतलब की यारी । छोटी-छोटी मांग न पूरी भई हमारी         ॥
 
काहु जनम में मोहि, रखें मतलब की यारी । छोटी-छोटी मांग न पूरी भई हमारी         ॥
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श्वास खींच के, आँख मीच आँसू ढरकाए । असली गालन पै नकली मोती लुढ़काए ॥
 
श्वास खींच के, आँख मीच आँसू ढरकाए । असली गालन पै नकली मोती लुढ़काए ॥
 
 
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शांत ह्वे गयो क्रोध तब, मारी हमने चोट । ‘साड़िन में खरचूं सबहि, सम्मेलन के नोट’ ॥
 
शांत ह्वे गयो क्रोध तब, मारी हमने चोट । ‘साड़िन में खरचूं सबहि, सम्मेलन के नोट’ ॥
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सम्मेलन के नोट? हाय ऐसों मत करियों । ख़बरदार द्वै साड़ी सों ज़्यादा मत लइयों ॥
 
सम्मेलन के नोट? हाय ऐसों मत करियों । ख़बरदार द्वै साड़ी सों ज़्यादा मत लइयों ॥
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हैं बनारसी ठग प्रसिद्ध तुम सूधे साधे । जितनें माँगें दाम लगइयों बासों आधे ॥
 
हैं बनारसी ठग प्रसिद्ध तुम सूधे साधे । जितनें माँगें दाम लगइयों बासों आधे ॥
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गाँठ बांध उनके वचन, पहुँचे बीच बज़ार  । देख्यो एक दुकान पै, साड़िन कौ अंबार ॥
 
गाँठ बांध उनके वचन, पहुँचे बीच बज़ार  । देख्यो एक दुकान पै, साड़िन कौ अंबार ॥
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साड़िन कौ अंबार, डिज़ाइन बीस दिखाए । छाँटी साड़ी एक, दाम अस्सी बतलाए ॥
 
साड़िन कौ अंबार, डिज़ाइन बीस दिखाए । छाँटी साड़ी एक, दाम अस्सी बतलाए ॥
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घरवारी की चेतावनी ध्यान में आई         | कर आधी कीमत, हमने चालीस लगाई ||
 
घरवारी की चेतावनी ध्यान में आई         | कर आधी कीमत, हमने चालीस लगाई ||
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दुकनदार कह्बे लग्यो, “लेनी हो तो लेओ” । “मोल-तोल कूं छोड़ के साठ रुपैय्या देओ” ॥
 
दुकनदार कह्बे लग्यो, “लेनी हो तो लेओ” । “मोल-तोल कूं छोड़ के साठ रुपैय्या देओ” ॥
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साठ रुपैय्या देओ? जंची नहिं हमकूं भैय्या । स्वीकारो तो देदें तुमकूं तीस रुपैय्या ?
 
साठ रुपैय्या देओ? जंची नहिं हमकूं भैय्या । स्वीकारो तो देदें तुमकूं तीस रुपैय्या ?
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घटते-घटते जब पचास पै लाला आए । हमने फिर आधे करके पच्चीस लगाए ॥
 
घटते-घटते जब पचास पै लाला आए । हमने फिर आधे करके पच्चीस लगाए ॥
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लाला को जरि-बजरि के ज्ञान है गयो लुप्त । मारी साड़ी फेंक के, लैजा मामा मुफ्त |
 
लाला को जरि-बजरि के ज्ञान है गयो लुप्त । मारी साड़ी फेंक के, लैजा मामा मुफ्त |
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लैजा मामा मुफ्त, कहे काका सों मामा | लाला तू दुकनदार है कै पैजामा    ||
 
लैजा मामा मुफ्त, कहे काका सों मामा | लाला तू दुकनदार है कै पैजामा    ||
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अपने सिद्धांतन पै काका अडिग रहेंगे । मुफ्त देओ तो एक नहीं द्वै साड़ी लेंगे ॥
 
अपने सिद्धांतन पै काका अडिग रहेंगे । मुफ्त देओ तो एक नहीं द्वै साड़ी लेंगे ॥
 
 
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भागे जान बचाय के, दाब जेब के नोट । आगे एक दुकान पै देख्यो साइनबोट  ॥
 
भागे जान बचाय के, दाब जेब के नोट । आगे एक दुकान पै देख्यो साइनबोट  ॥
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देख्यो साइनबोट, नज़र वा पै दौड़ाई         ।          ‘सूती साड़ी द्वै रुपया, रेशमी अढ़ाई’ ॥
 
देख्यो साइनबोट, नज़र वा पै दौड़ाई         ।          ‘सूती साड़ी द्वै रुपया, रेशमी अढ़ाई’ ॥
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कहं काका कवि, यह दुकान है सस्ती कितनी । बेचेंगे हाथरस, लै चलें दैदे जितनी ॥
 
कहं काका कवि, यह दुकान है सस्ती कितनी । बेचेंगे हाथरस, लै चलें दैदे जितनी ॥
 
 
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भीतर घुसे दुकान में, बाबू आर्डर लेओ । सौ सूती सौ रेशमी साड़ी हमकूं देओ ॥
 
भीतर घुसे दुकान में, बाबू आर्डर लेओ । सौ सूती सौ रेशमी साड़ी हमकूं देओ ॥
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साड़ी हमकूं देओ, क्षणिक सन्नाटो छायो । डारी हमपे नज़र और लाला मुस्कायो ॥
 
साड़ी हमकूं देओ, क्षणिक सन्नाटो छायो । डारी हमपे नज़र और लाला मुस्कायो ॥
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भांग छानिके आयो है का दाढ़ी वारे ?     लिखे बोर्ड पै ‘ड्राइ-क्लीन’ के रेट हमारे ॥
 
भांग छानिके आयो है का दाढ़ी वारे ?     लिखे बोर्ड पै ‘ड्राइ-क्लीन’ के रेट हमारे ॥

18:36, 15 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

कवि-सम्मेलन के लए बन्यौ अचानक प्लान । काकी के बिछुआ बजे, खड़े है गए कान ॥

खड़े है गए कान, 'रहस्य छुपाय रहे हो' । सब जानूँ मैं, आज बनारस जाय रहे हो ॥

'काका' बनिके व्यर्थ थुकायो जग में तुमने । कबहु बनारस की साड़ी नहिं बांधी हमने ॥


हे भगवन, सौगन्ध मैं आज दिवाऊं तोहि । कवि-पत्नी मत बनइयो, काहु जनम में मोहि ॥

काहु जनम में मोहि, रखें मतलब की यारी । छोटी-छोटी मांग न पूरी भई हमारी ॥

श्वास खींच के, आँख मीच आँसू ढरकाए । असली गालन पै नकली मोती लुढ़काए ॥


शांत ह्वे गयो क्रोध तब, मारी हमने चोट । ‘साड़िन में खरचूं सबहि, सम्मेलन के नोट’ ॥

सम्मेलन के नोट? हाय ऐसों मत करियों । ख़बरदार द्वै साड़ी सों ज़्यादा मत लइयों ॥

हैं बनारसी ठग प्रसिद्ध तुम सूधे साधे । जितनें माँगें दाम लगइयों बासों आधे ॥


गाँठ बांध उनके वचन, पहुँचे बीच बज़ार । देख्यो एक दुकान पै, साड़िन कौ अंबार ॥

साड़िन कौ अंबार, डिज़ाइन बीस दिखाए । छाँटी साड़ी एक, दाम अस्सी बतलाए ॥

घरवारी की चेतावनी ध्यान में आई | कर आधी कीमत, हमने चालीस लगाई ||


दुकनदार कह्बे लग्यो, “लेनी हो तो लेओ” । “मोल-तोल कूं छोड़ के साठ रुपैय्या देओ” ॥

साठ रुपैय्या देओ? जंची नहिं हमकूं भैय्या । स्वीकारो तो देदें तुमकूं तीस रुपैय्या ?

घटते-घटते जब पचास पै लाला आए । हमने फिर आधे करके पच्चीस लगाए ॥


लाला को जरि-बजरि के ज्ञान है गयो लुप्त । मारी साड़ी फेंक के, लैजा मामा मुफ्त |

लैजा मामा मुफ्त, कहे काका सों मामा | लाला तू दुकनदार है कै पैजामा ||

अपने सिद्धांतन पै काका अडिग रहेंगे । मुफ्त देओ तो एक नहीं द्वै साड़ी लेंगे ॥


भागे जान बचाय के, दाब जेब के नोट । आगे एक दुकान पै देख्यो साइनबोट ॥

देख्यो साइनबोट, नज़र वा पै दौड़ाई । ‘सूती साड़ी द्वै रुपया, रेशमी अढ़ाई’ ॥

कहं काका कवि, यह दुकान है सस्ती कितनी । बेचेंगे हाथरस, लै चलें दैदे जितनी ॥


भीतर घुसे दुकान में, बाबू आर्डर लेओ । सौ सूती सौ रेशमी साड़ी हमकूं देओ ॥

साड़ी हमकूं देओ, क्षणिक सन्नाटो छायो । डारी हमपे नज़र और लाला मुस्कायो ॥

भांग छानिके आयो है का दाढ़ी वारे ? लिखे बोर्ड पै ‘ड्राइ-क्लीन’ के रेट हमारे ॥