भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरसत बरषा परम सुहावन / शिवदीन राम जोशी

Kavita Kosh से
Kailash Pareek (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:07, 20 दिसम्बर 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरसत बरषा परम सुहावन ।
रिमझिम रिमझिम बरस रहा है,ये आया सखि सावन ॥
बादर उमड़ी घुमड़ी सखि छाये, दादुर कोयल गीत सुनाये ।
नांचत मोर पिहूँ पी रटि रटि, मौसम सुन्दर उर मन भावन ॥
दामिनी दमकत चमकत चम-चम, नांच रही परियां सखि छम-छम ।
साज बाज सुर ताल राग रंग,गंध्रिप* लगे गुनी जन गावन ॥
नाना पक्षी हंस चकोरा, हरन करत मन चातक मौरा ।
ये वृन्दावन लहर निराली, यमुना गंगा अनुपम पावन ॥
कहे शिवदीन मनोहर जोरी, कृष्ण राधिका चन्द्र चकोरी ।
धन्य-धन्य वृजराज छटा छवि, वृजजन जन के मन हर्षावन ॥



-*गन्धर्व