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"बरसाते रहो / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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/ मधुमाह आवत्तु (पाली अनुवाद)
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रचनाकार :डॉ॰ कविता भट्ट: शैलपुत्रीय:
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अनुवादक:राम प्रताप सिंह
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अब्बे सरधा पीती मम,किच्च नेहु बरसत्तु
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जेत्थमिव जीवनत्तथा मधुमाह आवत्तु
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मनस्सरणी आकुलता,विदूरे समुद्दा
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नयनपच्छेन मग्गकांकर अपनयत्तु
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मधुमाह आवत्तु
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जगते सत्पीती नाम,कोपी अस्स न करत्तु
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आसञ्दधन कप्पनेन सह सुरञ् मेलयत्तु।
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मधुमाह आवन्तु।
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गेहेदं तव नात्थी मम,बिरथा वाद-विवाद
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चत्तारि दिवसेन सत्थ,पिरित्तिपथे चलन्तु
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मधुमाह आवन्तु
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ओधुक्किता उपवेत्थाकतम तोम परियोधनप्परि पराच्छादन ।
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कालञ् कालञ् भोत्तु हसती अपनयत्तु अब्ब मदञ् ।
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मधुमाह आवत्तु
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06:36, 23 फ़रवरी 2023 का अवतरण


अंध-श्रद्धा प्रेम मेरा, कुछ नेह बरसाते रहो।
जेठ सा जीवन तपा, मधुमास तुम आते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
विकल है- मन की नदी, बहुत सागर दूर है।
पलकों से- इसकी राह के कंकर हटाते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
जग में सच्चा प्यार ना, कोई ऐसा ना कहे।
आशा ओढ़ो, कल्पना संग सुर मिलाते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
घर ये तेरा- ना है मेरा, वृथा वाद-विवाद है।
चार दिन ही साथ हैं- प्रेमपथ पग बढ़ाते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
ओढ़कर बैठे हो काहे, तुम दुशाले पर दुशाले?
काल-काल बन मुस्का रहा, अब अहं हटाते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
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/ मधुमाह आवत्तु (पाली अनुवाद)
रचनाकार :डॉ॰ कविता भट्ट: शैलपुत्रीय:
अनुवादक:राम प्रताप सिंह

अब्बे सरधा पीती मम,किच्च नेहु बरसत्तु
जेत्थमिव जीवनत्तथा मधुमाह आवत्तु
मनस्सरणी आकुलता,विदूरे समुद्दा
नयनपच्छेन मग्गकांकर अपनयत्तु
मधुमाह आवत्तु
जगते सत्पीती नाम,कोपी अस्स न करत्तु
आसञ्दधन कप्पनेन सह सुरञ् मेलयत्तु।

मधुमाह आवन्तु।

गेहेदं तव नात्थी मम,बिरथा वाद-विवाद
चत्तारि दिवसेन सत्थ,पिरित्तिपथे चलन्तु
मधुमाह आवन्तु

ओधुक्किता उपवेत्थाकतम तोम परियोधनप्परि पराच्छादन ।
कालञ् कालञ् भोत्तु हसती अपनयत्तु अब्ब मदञ् ।
मधुमाह आवत्तु