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बरसों हे अंबर के दानी/ गुलाब खंडेलवाल

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बरसों हे अंबर के दानी
तुम बरसो तो जीवन बरसे, सरसें तरसे प्राणी

उथलें ताल, नदी-नद उमड़ें, टपकें छप्पर-छानी
सूखे पेड़ हरे हों फिर से, पाकर नयी जवानी

तोरण-बंदनवार सजाकर भूमि करे अगवानी
मन भीजे, घर-आँगन भीजे, भीजे चूनर धानी

कभी लुटाते आओ मोती, कभी बहाते पानी
कभी बरस लो आँसू बनकर, रोये राधा रानी

नाचा किया मोर जंगल में, प्रीति किसीने जानी!
अब जानी जब घर-घर गूँजी 'पिहू-पिहू' की वाणी

झूम-झूम, झुक-झुककर बरसो, ख़ूब करो मनमानी
फिर लहरों पर चले उछलती, मेरी नाव पुरानी

बरसों हे अंबर के दानी!
तुम बरसो तो जीवन बरसे, सरसें तरसे प्राणी