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"बल्ली बाई / अंजना बख्शी" के अवतरणों में अंतर

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हमारे लिए बिछा दिया करती दरी से बनी गुदड़ी और  
 
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सामने रख देती बल्ली बाई
 
सामने रख देती बल्ली बाई
चुरे हुए भात और उबली दाल के  
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03:44, 27 मार्च 2011 का अवतरण

दाल भात और पोदीने की चटनी से
भरी थाली आती हैं जब याद
तो हो उठता है ताज़ा
बल्ली बाई के घर का वो आँगन
और चूल्हे पर हमारे लिए
पकता दाल–भात !
 
दादा अक्सर जाली-बुना करते थे
मछली पकड़ने के लिए पूरी तन्मयता से,
रेडियों के साथ चलती रहती थी
उनकी उँगलियाँ
और झाडू बुहारकर सावित्री दी
हमारे लिए बिछा दिया करती दरी से बनी गुदड़ी और
सामने रख देती बल्ली बाई
चुरे हुए<ref>उबले हुए</ref> भात और उबली दाल के
साथ पोदीने की चटनी
 
एक-एक निवाला अपने
खुरदरे हाथो से खिलाती
जिन हाथों से
वो घरों में माँजती थी बर्तन
कितना ममत्व था उन हाथों के
स्पर्श में,
नही मिलता जो अब कभी
राजधानी में !

उस रोज़,
बल्ली बाई चल बसी और
संग में उसकी वो दाल–भात की थाली
और फटे खुरदरे हाथों की महक !!

शब्दार्थ
<references/>