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बस तू लिख / शशि काण्डपाल

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 (एक ख़त,एक इल्तिज़ा, तेरे नाम.. जो तू बस चुकने को तैयार है)

 लिख कि हाथ / ख़याल तेरे आजाद है ...

अन्दर कुछ खदक रहा हो तो
 उसे आँसुओ में जाया मत कर,
  तू लिख..
लिख कि
 तुझमे जज्बातों का बवंडर उठता है,
 लिख की तू जिंदा है,
  लिख कि चाँद, सितारे, फूल पत्ती सब तुझे छूती हैं,
  तू लिख चिड़ियों का गीत,
नभ और धरा के मिलन का विस्तार,
  आसमानी रंग,
मेघों का सन्देश,
मजलूम की आवाज और
 बेइन्साफियाँ जो तुझे बर्दाश्त नहीं..
अपनी इबारतों को ..
हर दिल,दिमाग, दीवार पर चस्पा कर दे
 ताकि तेरी इबारतें दस्तावेज़ बन जाएँ,
ना बने तो सनद रहे,
  सनद न सही
 आंसुओ में बह,
जाया होने से बेहतर,
 कुछ की नज़रों से गुजर जाये...

बस इतना याद रख
आंसू धुल जायेंगे,
तू मिटा भी सकती है,
सुखा और छुपा भी सकती है..
 लेकिन अन्दर का तूफ़ान थामे,
लेखनी पकड़ लिखना,
 खुद को मिटा देना भी है ...

लिख कि
सदियाँ याद रखें!
लिख की पत्थर भी पिघल जाये...
  लिख कि
आहों और दाद में फर्क करना मुश्किल हो,
लिख कि
तू अक्षर बन बिखरे
 और मोतियों सी चमक उठे !!

बस तू लिख...