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"बस देख ली आजादी हामनै म्हारे हिन्दुस्तान की / हरियाणवी" के अवतरणों में अंतर

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सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ।।  
 
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न्यूं कहो थे हाळियां नै सब आराम हो ज्यांगे -  
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खेतों में पानी के सब इंतजाम हो ज्यांगे ।  
 
खेतों में पानी के सब इंतजाम हो ज्यांगे ।  
 
घणी कमाई होवैगी, थोड़े काम हो ज्यांगे -  
 
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सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥  
 
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जमींदार कै पैदा हो-ज्यां, दुख विपदा में पड़-ज्यां सैं -  
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उस्सै दिन तैं कई तरहां का रास्सा छिड़-ज्या सै ।  
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उस्सै दिन तैं कई तरहाँ का रास्सा छिड़-ज्या सै ।  
लगते ही साल पन्द्रहवां, हाळी बणना पड़-ज्या सै -  
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घी-दूध का सीच्या चेहरा कती काळा पड़-ज्या सै ।  
 
घी-दूध का सीच्या चेहरा कती काळा पड़-ज्या सै ।  
  
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पौह-माह के महीने में जाडा फूक दे छाती -  
 
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पाणी देती हाणां मारां चादर की गात्ती ।  
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पाणी देती हाणाँ माराँ चादर की गात्ती ।  
 
चलैं जेठ में लू, गजब की लगती तात्ती -  
 
चलैं जेठ में लू, गजब की लगती तात्ती -  
 
हाळी तै हळ जोड़ै, सच्चा देश का साथी ।  
 
हाळी तै हळ जोड़ै, सच्चा देश का साथी ।  

19:43, 24 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: कवि नरसिंह

बस देख ली आजादी हामनै म्हारे हिन्दुस्तान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ।।

न्यूं कहो थे हाळियाँ नै सब आराम हो ज्यांगे -
खेतों में पानी के सब इंतजाम हो ज्यांगे ।
घणी कमाई होवैगी, थोड़े काम हो ज्यांगे -
जितनी चीज मोल की, सस्ते दाम हो ज्यांगे ।

आज हार हो-गी थारी कही उलट जुबान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥

जमींदार कै पैदा हो-ज्याँ, दुख विपदा में पड़-ज्याँ सैं -
उस्सै दिन तैं कई तरहाँ का रास्सा छिड़-ज्या सै ।
लगते ही साल पन्द्रहवाँ, हाळी बणना पड़-ज्या सै -
घी-दूध का सीच्या चेहरा कती काळा पड़-ज्या सै ।

तीस साल में बूढ़ी हो-ज्या आज उमर जवान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥

पौह-माह के महीने में जाडा फूक दे छाती -
पाणी देती हाणाँ माराँ चादर की गात्ती ।
चलैं जेठ में लू, गजब की लगती तात्ती -
हाळी तै हळ जोड़ै, सच्चा देश का साथी ।

फिर भी भूखा मरता, देखो रै माया भगवान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥

बेईमानी तै भाई आज धार ली म्हारे लीडर सारों नै -
रिश्वत ले कै जगहां बतावैं आपणे मिन्तर प्यारों नै ।
कर दिया देश का नाश अरै इन सारे गद्दारों नै -
आज कुछ अकल छोडी ना हाळी लोग बिचारों मैं ।

आज तो कुछ भी कद्र नहीं है एक मामूली इंसान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥