भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बहनें / तुषार धवल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुषार धवल }} आंगन में बंधे खम्भे से लट सी उलझ जाती हैं ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:55, 30 जून 2008 के समय का अवतरण
आंगन में बंधे खम्भे से
लट सी उलझ जाती हैं
बहनें
और
दर्द की एक सदी
खुली छत की गर्म हवा में
कबूतर बन उड़ जाती है।
वे बाप की छप्पन साल पुरानी कमीज़ हैं
वे माँ के बचपन की यादें हैं
जो
उठती हैं हर शाम
चूल्हे के धुएँ संग
और
उड़तीं हैं पतंग बन।
वे चुनती हैं
प्याली भर चावल
कि
ज़िन्दगी को बनाया जा सके
अधिक से अधिक
साफ़ और सफ़ेद।
वे बनती हैं
आंगन से गली
और
गली से मैदान
जहाँ
रात की चादर में
बुलबुले सी फूटती है भोर
और
देखते ही देखते
धरती की माँ बन जाती हैं
बहनें।