भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहुत कठिन है डगर पनघट की / अमीर खुसरो

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:09, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमीर खुसरो }}<poem>बहुत कठिन है डगर पनघट की । कैसे मै...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत कठिन है डगर पनघट की ।
कैसे मैं भर लाउं मधवा से मटकी ?
पनिया भरन को मैं जो गइ थी ।
दोड़ झपट मोरा मटकी पटकी ।
खुसरो निजाम के बल बल जाईय्ये ।
लाज रखो मोरे घुंघट पट की ।