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बहुत दिनों का गया अपने गाँव में आ जा / रंजना वर्मा

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बहुत दिन हुए साथी अब तो गाँव में आजा।
नगर नगर मत भटक अपने ठाँव में आजा॥

भूख है प्यास है औ चमकती चकाचौंध भी
हर कदम चुभ रहे काँटे हैं पाँव में आजा॥

आग बहती है जिसे नीर समझ बैठा है
हाथ जल जायेंगे तू धूप छाँव में आजा॥

काली सड़कें नहीं तुझको कहीं पहुँचायेंगी
मिलती मंजिल है जहाँ उस गाँव में आजा॥

भूल सब कुछ गया तू शहर में जब से है गया
खेत पगडंडियों बगियों की छाँव में आजा॥