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बहुत दूर से / खीर / नहा कर नही लौटा है बुद्ध
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बहुत दूर से दौड़ता आया हूँ
रंगों में दौड़ता दुःखों का पीलापन
अनगिनत चुभन पीछे छोड़ आया हूँ
तुम्हारी आवाज़ सुनने आया हूँ
तुम खड़ी गंगा किनारे
तुम्हें घेरे हैं बच्चे
तुम्हारे पैर गीले
हाथों संगीत बह रहा छल-छल
बच्चों ने लिखी हैं कविताएँ
कविताओं में तुम
हवा पानी ज़मीं आस्माँ से परे
सच तुम्हारी आवाज़
तकलीफ़ के समन्दर से निकलता जीवन
तुम्हारी आँखें मेरी हथेलियाँ गंगा का पानी।