भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहुत पहले / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:34, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |संग्रह= }} <Poem> बहुत पहले रोशनी का म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत पहले
रोशनी का मंत्र हमने भी जपा था
बहुत पहले

इस अंधेरे नए युग में
मंत्र वह हो गया उल्टा
और किरणें भी हमारे सूर्य की
हो गईं कुलटा
बहुत पहले
बर्फ़ युग में भी हमारा घर तपा था
बहुत पहले

दीये की बाती हमारी
थी अलौकिक खो गई वह
हवन की जलती अगिन थी
हो गई है सुरमई वह
बहुत पहले
हाँ किसी अख़बार में भी यह छपा था
बहुत पहले

वक्त के जादूभरे
इस झुटपुटे में रंग खोए
जग गए वे दैत्य
जो थे रोशनी में रहे सोए
बहुत पहले
आँख से भी रोशनी का बहनपा था
बहुत पहले