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बहुत बोल चुके / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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बहुत बोल चुके, अब न बोलो
अपने मन की गाँठ न खोलो।

गाँठ खोलकर अब तक तुमने
जितना भी था, सभी गँवाया।
मेरे यार ज़रा बतला दो
बदले में तुमने क्या पाया ?

बहुत तोल चुके , अब न तोलो
जिसको अब तक तुमने तोला
उन सबको पाया है पोला
वार किया उसने ही छुपकर
जिसको तुमने समझा भोला।

अब सबके मन अमृत न घोलो
अमृत घोला , जिनके मन में
उनका मन विषबेल हो गया।
धोखा देकर , खिल-खिल हँसना
उन लोगों का खेल हो गया।

बहुत बोल चुके, अब न बोलो
अपने मन की गाँठ न खोलो।

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