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रात का रोना तो बहुत हो चुका ,
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नई भोर की नई रीत लिखें अब।
  
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नहीं ला सकता  है समय बुढ़ापा ,
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युगल पृष्ठों पर  हम गीत लिखें अब ।
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नहीं हों आँसू  हों नहीं  सिसकियाँ,
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प्रेम-शृंगार और प्रीत लिखें अब।
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दु:ख- संघर्षों  से हार न माने ,
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वही भावाक्षर मन मीत लिखें अब।
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समय जिसे  कभी  बुझा  नहीं  पाए
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हम वह जिजीविषा पुनीत लिखें अब
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कभी हार न जाना ठोकर खाकर,
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पग-पग पर वही उद्गीत लिखें अब।
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काल -गति से  कभी बाधित न होंगे
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आज कुछ इसके विपरीत लिखें अब।
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यही समय हमारा नाम लिखेगा ,
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सोपानों पर नई जीत लिखें अब।
  
 
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16:03, 17 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

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रात का रोना तो बहुत हो चुका ,
नई भोर की नई रीत लिखें अब।

नहीं ला सकता है समय बुढ़ापा ,
युगल पृष्ठों पर हम गीत लिखें अब ।

नहीं हों आँसू हों नहीं सिसकियाँ,
प्रेम-शृंगार और प्रीत लिखें अब।

दु:ख- संघर्षों से हार न माने ,
वही भावाक्षर मन मीत लिखें अब।

समय जिसे कभी बुझा नहीं पाए
हम वह जिजीविषा पुनीत लिखें अब

कभी हार न जाना ठोकर खाकर,
पग-पग पर वही उद्गीत लिखें अब।

काल -गति से कभी बाधित न होंगे
आज कुछ इसके विपरीत लिखें अब।

यही समय हमारा नाम लिखेगा ,
सोपानों पर नई जीत लिखें अब।