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बाईपास सर्जरी / चन्दन सिंह

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क्षमा करें,
किसी के हृदय रोग के बारे में सुनकर
दुख मुझे अधिक नहीं होता
पृथ्वी पर हृदय के बचे रहने का भरोसा होता है

दिन पर दिन कम होते जा रहे हैं हृदय
जैसे कम होते जा रहे हैं जंगल
अब कम बरसते हैं मेघ और आँखें
दिन पर दिन सूखता ही जाता है
कण्ठ का कुआँ !

अगर कहीं भी हृदय है
तो उसे बचाया ही जाना चाहिए
क्या हुआ जो हृदय तक जाने वाली सड़क पर
ट्रैफ़िक जाम है
बना लिया जाएगा कोई न कोई बाईपास
चाहे थोड़ा धूल भरा घुमावदार कच्चा ही सही
कि हृदय तक पहुँच सके ज़रूरी रक्त

चूमता हूँ मैं
इस बाईपास बनाने वाले डॉक्टरों के हाथ
कि हृदय तक अब इसी बाईपास से होकर
पहुँचता रहेगा रक्त
और रक्त के पीछे-पीछे इसी बाईपास से होकर
पहुँचते रहेंगे
चाय की दुकान वाले लड़के के वे आँसू
जो गाल पर से किसी की अँगुलियों के निशान धो रहे हैं
बाँस की सीढ़ियाँ चढ़कर बहुत ऊपर माल पहुँचाने गई
उस गर्भवती औरत की देह से चुआ पसीना
चू सकता था जिसका गर्भ भी
किसी सच बोलने वाले इनसान के फटे सिर से टपकता ख़ून

इनका
इन सबका भी हृदय तक पहुँचना बेहद ज़रूरी है
इनकी तरलता के बिना
मुश्किल है किसी हृदय का
पलकें झपकाते रह पाना ।