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बाजबहादुर-रूपमती / नईम

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बाजबहादुर-रूपमती की प्रेम कहानी,
लगभग उम्रदराज हो गई।

          ऐसी उम्रदराज कि जो ताजा-तरीन है,
          तवारीख़ के पृष्ठों में सबसे हसीन है,
          भील-भिलालों के जीवन में रची-बसी जो-

घनानंद की है सुजान औ कवि केशव की वो प्रवीन है।
भरे भवन हों या फिर बीहड़
मदमाते यौवन की वो आवाज हो गई।
          
          जाति, धर्म, नस्लों के घेरे घिरी नहीं जो,
          दमित वर्जनाओं-सी कोल्हू में पिरी नहीं जो,
          छल-छल बहती निपट पहाड़ी धाराओं-सी

क्षमायाचना-सी चरणों में नहीं गिरी जो;
कभी किनारे तोड़ बही ये
कभी नील झीलों-सी गहरी लाज हो गई।