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"बाजी लगी प्रेम की-3 / दिनेश कुमार शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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न तर्क न प्रमाण
 
न तर्क न प्रमाण

02:25, 9 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

न तर्क न प्रमाण
तुम्हारी आभा में
तो जो है सभी कुछ
टिका है प्रतीक्षा के मौन में...
जब टूटता है मौन तनी प्रत्यंचा-सा
हनाहन बाण लगते हैं हृदय पर
शब्द चुप हैं, अभी तो
बहुत गहरी नींद से तुम जागने को हो
तुम्हारी पलक काँपी है अभी तो...