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"बाजुओं की थकान जिन्दा रख / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं, | आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं, | ||
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वो पुराना मकान ज़िंदा रख। | वो पुराना मकान ज़िंदा रख। | ||
12:23, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
बाज़ुओं की थकान ज़िंदा रख।
जीतने तक उड़ान ज़िंदा रख।
आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं,
है जो ख़ुद पे गुमान ज़िंदा रख।
तेरा बचपन ही मर न जाय कहीं,
वो पुराना मकान ज़िंदा रख।
बेज़बानों से कुछ तो सीख मियाँ,
तू भी अपनी ज़बान ज़िंदा रख।
नोट चलता हो प्यार का भी जहाँ,
एक ऐसी दुकान ज़िंदा रख।
जान तुझमें भी डाल देंगे कभी,
नाक, आँखें व कान ज़िंदा रख।