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बात क्या हो सुलह-सफ़ाई की / श्याम कश्यप बेचैन

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बात क्या हो सुलह-सफ़ाई की
उसने सपने में भी लड़ाई की

गर्क़ कर देगा अश्क का सैलाब
तह में मत जा मेरी रुलाई की

हर तरफ़ है खनकती ज़ंजीरें
राह सूझे नहीं रिहाई की

साफ़ रिश्तों की झील में अब तो
पर्त कुछ जम गई है काई की

हम पलक पावड़े बिछाए थे
उसने बस आ के रस्म अदाई की

जानते थे बहक रहा है दिल
हमने भी जान कर ढिलाई की

लोग दुश्मन समझ रहें हैं मुझे
आपने क्यों मेरी बड़ाई की

यूँ तो फ़ितरत में आपके ये नही
आपने भूल कर भलाई की