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लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]|संग्रह=अपरा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"}}[[Category:कविताएँलम्बी कविता]][[Category:बादल राग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"/ भाग १|<< पिछला भाग]]<poem>सिन्धु के अश्रु! धारा के खिन्न दिवस के दाह! विदाई के अनिमेष नयन! मौन उर में चिह्नित कर चाह छोड़ अपना परिचित संसार-
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*सुरभि का कारागार, चले जाते हो सेवा-पथ पर, तरु के सुमन! सफल करके मरीचिमाली का चारु चयन! स्वर्ग के अभिलाषी हे वीर, सव्यसाची-से तुम अध्ययन-अधीर अपना मुक्त विहार,
<PRE>छाया में दुःख के अन्तःपुर का उद्घाचित द्वार छोड़ बन्धुओ के उत्सुक नयनों का सच्चा प्यार, जाते हो तुम अपने पथ पर, स्मृति के गृह में रखकर अपनी सुधि के सज्जित तार।
सिन्धु के अश्रुपूर्ण-मनोरथ!आए- धारा के खिन्न दिवस के दाहतुम आए; रथ का घर्घर नाद तुम्हारे आने का संवाद!विदाई ऐ त्रिलोक जित्! इन्द्र धनुर्धर! सुरबालाओं के अनिमेष नयनसुख स्वागत। विजय!विश्व में नवजीवन भर, मौन उर उतरो अपने रथ से भारत! उस अरण्य में चिह्नित कर चाहबैठी प्रिया अधीर, छोड़ अपना परिचित संसार-कितने पूजित दिन अब तक हैं व्यर्थ, मौन कुटीर।
सुरभि का कारागार,चले जाते हो सेवाआज भेंट होगी-पथ पर,तरु के सुमन!सफल करकेमरीचिमाली का चारु चयन!स्वर्ग के अभिलाषी हे वीरहाँ,होगी निस्संदेह सव्यसाचीआज सदा-से तुम अध्ययनसुख-अधीरछाया होगा कानन-गेह अपना मुक्त विहारआज अनिश्चित पूरा होगा श्रमिक प्रवास,आज मिटेगी व्याकुल श्यामा के अधरों की प्यास। </poem>
छाया में दुःख के अन्तःपुर का उद्घाचित द्वारछोड़ बन्धुओ के उत्सुक नयनों का सच्चा प्यार,जाते हो तुम अपने पथ पर,स्मृति के गृह में रखकरअपनी सुधि के सज्जित तार। पूर्ण-मनोरथ! आए-तुम आए;रथ का घर्घर नादतुम्हारे आने का संवाद!ऐ त्रिलोक जित्! इन्द्र धनुर्धर!सुरबालाओं के सुख स्वागत।विजय! विश्व में नवजीवन भर,उतरो अपने रथ से भारत!उस अरण्य में बैठी प्रिया अधीर,कितने पूजित दिन अब तक हैं व्यर्थ, मौन कुटीर। आज भेंट होगी-हाँ, होगी निस्संदेहआज सदा-सुख-छाया होगा कानन-गेहआज अनिश्चित पूरा होगा श्रमिक प्रवास,आज मिटेगी व्याकुल श्यामा के अधरों की प्यास।  <[[बादल राग /PREसूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" / भाग ३|अगला भाग >>]]
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