"बाबुल तुम बगिया के तरुवर / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर
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− | दाना चुगते उड़ जाएँ हम , पिया मिलन की घड़ियाँ रे | + | |रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली |
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+ | बाबुल तुम बगिया के तरुवर, हम तरुवर की चिड़ियाँ रे | ||
+ | दाना चुगते उड़ जाएँ हम, पिया मिलन की घड़ियाँ रे | ||
+ | उड़ जाएँ तो लौट न आयें, ज्यों मोती की लडियां रे | ||
बाबुल तुम बगिया के तरुवर ……. | बाबुल तुम बगिया के तरुवर ……. | ||
− | आँखों | + | आँखों से आँसू निकले तो पीछे तके नहीं मुड़के |
− | + | घर की कन्या बन का पंछी, फिरें न डाली से उड़के | |
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जनम -जनम सौगात पिया की | जनम -जनम सौगात पिया की | ||
− | + | बाबुल तुम गूंगे नैना, हम आँसू की फुलझड़ियाँ रे | |
− | बाबुल | + | उड़ जाएँ तो लौट न आएँ ज्यों मोती की लडियाँ रे |
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हमको सुध न जनम के पहले , अपनी कहाँ अटारी थी | हमको सुध न जनम के पहले , अपनी कहाँ अटारी थी | ||
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आँख खुली तो नभ के नीचे , हम थे गोद तुम्हारी थी | आँख खुली तो नभ के नीचे , हम थे गोद तुम्हारी थी | ||
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ऐसा था वह रैन -बसेरा | ऐसा था वह रैन -बसेरा | ||
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जहाँ सांझ भी लगे सवेरा | जहाँ सांझ भी लगे सवेरा | ||
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बाबुल तुम गिरिराज हिमालय , हम झरनों की कड़ियाँ रे | बाबुल तुम गिरिराज हिमालय , हम झरनों की कड़ियाँ रे | ||
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उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | ||
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छितराए नौ लाख सितारे , तेरी नभ की छाया में | छितराए नौ लाख सितारे , तेरी नभ की छाया में | ||
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मंदिर -मूरत , तीरथ देखे , हमने तेरी काया में | मंदिर -मूरत , तीरथ देखे , हमने तेरी काया में | ||
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दुःख में भी हमने सुख देखा | दुःख में भी हमने सुख देखा | ||
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तुमने बस कन्या मुख देखा | तुमने बस कन्या मुख देखा | ||
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बाबुल तुम कुलवंश कमल हो , हम कोमल पंखुड़ियां रे | बाबुल तुम कुलवंश कमल हो , हम कोमल पंखुड़ियां रे | ||
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उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | ||
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बचपन के भोलेपन पर जब , छिटके रंग जवानी के | बचपन के भोलेपन पर जब , छिटके रंग जवानी के | ||
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प्यास प्रीति की जागी तो हम , मीन बने बिन पानी के | प्यास प्रीति की जागी तो हम , मीन बने बिन पानी के | ||
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जनम -जनम के प्यासे नैना | जनम -जनम के प्यासे नैना | ||
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चाहे नहीं कुंवारे रहना | चाहे नहीं कुंवारे रहना | ||
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बाबुल ढूंढ फिरो तुम हमको , हम ढूंढें बावरिया रे | बाबुल ढूंढ फिरो तुम हमको , हम ढूंढें बावरिया रे | ||
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उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | ||
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चढ़ती उमर बढ़ी तो कुल -मर्यादा से जा टकराई | चढ़ती उमर बढ़ी तो कुल -मर्यादा से जा टकराई | ||
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पगड़ी गिरने के दर से , दुनिया जा डोली ले आई | पगड़ी गिरने के दर से , दुनिया जा डोली ले आई | ||
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मन रोया , गूंजी शहनाई | मन रोया , गूंजी शहनाई | ||
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नयन बहे , चुनरी पहनाई | नयन बहे , चुनरी पहनाई | ||
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पहनाई चुनरी सुहाग की , या डाली हथकड़ियां रे | पहनाई चुनरी सुहाग की , या डाली हथकड़ियां रे | ||
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उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | ||
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मंत्र पढ़े सौ सदी पुराने , रीत निभाई प्रीत नहीं | मंत्र पढ़े सौ सदी पुराने , रीत निभाई प्रीत नहीं | ||
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तन का सौदा कर के भी तो , पाया मन का मीत नहीं | तन का सौदा कर के भी तो , पाया मन का मीत नहीं | ||
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गात फूल सा , कांटे पग में | गात फूल सा , कांटे पग में | ||
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जग के लिए जिए हम जग में | जग के लिए जिए हम जग में | ||
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बाबुल तुम पगड़ी समाज के , हम पथ की कंकरियां रे | बाबुल तुम पगड़ी समाज के , हम पथ की कंकरियां रे | ||
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उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | ||
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मांग रची आंसू के ऊपर , घूंघट गीली आँखों पर | मांग रची आंसू के ऊपर , घूंघट गीली आँखों पर | ||
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ब्याह नाम से यह लीला ज़ाहिर करवाई लाखों पर | ब्याह नाम से यह लीला ज़ाहिर करवाई लाखों पर | ||
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नेह लगा तो नैहर छूता , पिया मिले बिछुड़ी सखियाँ | नेह लगा तो नैहर छूता , पिया मिले बिछुड़ी सखियाँ | ||
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प्यार बताकर पीर मिली तो नीर बनीं फूटी अंखियाँ | प्यार बताकर पीर मिली तो नीर बनीं फूटी अंखियाँ | ||
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हुई चलाकर चाल पुरानी | हुई चलाकर चाल पुरानी | ||
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नयी जवानी पानी पानी | नयी जवानी पानी पानी | ||
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चली मनाने चिर वसंत में , ज्यों सावन की झाड़ियाँ रे | चली मनाने चिर वसंत में , ज्यों सावन की झाड़ियाँ रे | ||
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उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | ||
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देखा जो ससुराल पहुंचकर , तो दुनिया ही न्यारी थी | देखा जो ससुराल पहुंचकर , तो दुनिया ही न्यारी थी | ||
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फूलों सा था देश हरा , पर कांटो की फुलवारी थी | फूलों सा था देश हरा , पर कांटो की फुलवारी थी | ||
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कहने को सारे अपने थे | कहने को सारे अपने थे | ||
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पर दिन दुपहर के सपने थे | पर दिन दुपहर के सपने थे | ||
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मिली नाम पर कोमलता के , केवल नरम कांकरिया रे | मिली नाम पर कोमलता के , केवल नरम कांकरिया रे | ||
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उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | ||
− | + | वेद-शास्त्र थे लिखे पुरुष के , मुश्किल था बचकर जाना | |
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− | वेद | + | |
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हारा दांव बचा लेने को , पति को परमेश्वर जाना | हारा दांव बचा लेने को , पति को परमेश्वर जाना | ||
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दुल्हन बनकर दिया जलाया | दुल्हन बनकर दिया जलाया | ||
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दासी बन घर बार चलाया | दासी बन घर बार चलाया | ||
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माँ बनकर ममता बांटी तो , महल बनी झोंपड़िया रे | माँ बनकर ममता बांटी तो , महल बनी झोंपड़िया रे | ||
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उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | ||
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मन की सेज सुला प्रियतम को , दीप नयन का मंद किया | मन की सेज सुला प्रियतम को , दीप नयन का मंद किया | ||
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छुड़ा जगत से अपने को , सिंदूर बिंदु में बंद किया | छुड़ा जगत से अपने को , सिंदूर बिंदु में बंद किया | ||
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जंजीरों में बाँधा तन को | जंजीरों में बाँधा तन को | ||
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त्याग -राग से साधा मन को | त्याग -राग से साधा मन को | ||
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पंछी के उड़ जाने पर ही , खोली नयन किवाड़ियाँ रे | पंछी के उड़ जाने पर ही , खोली नयन किवाड़ियाँ रे | ||
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उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | ||
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जनम लिया तो जले पिता -माँ , यौवन खिला ननद -भाभी | जनम लिया तो जले पिता -माँ , यौवन खिला ननद -भाभी | ||
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ब्याह रचा तो जला मोहल्ला , पुत्र हुआ तो बंध्या भी | ब्याह रचा तो जला मोहल्ला , पुत्र हुआ तो बंध्या भी | ||
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जले ह्रदय के अन्दर नारी | जले ह्रदय के अन्दर नारी | ||
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उस पर बाहर दुनिया सारी | उस पर बाहर दुनिया सारी | ||
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मर जाने पर भी मरघट में , जल - जल उठी लकड़ियाँ रे | मर जाने पर भी मरघट में , जल - जल उठी लकड़ियाँ रे | ||
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उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | ||
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जनम -जनम जग के नखरे पर , सज -धजकर जाएँ वारी | जनम -जनम जग के नखरे पर , सज -धजकर जाएँ वारी | ||
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फिर भी समझे गए रात -दिन हम ताड़न के अधिकारी | फिर भी समझे गए रात -दिन हम ताड़न के अधिकारी | ||
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पहले गए पिया जो हमसे अधम बने हम यहाँ अधम से | पहले गए पिया जो हमसे अधम बने हम यहाँ अधम से | ||
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पहले ही हम चल बसें , तो फिर जग बाटें रेवड़ियां रे | पहले ही हम चल बसें , तो फिर जग बाटें रेवड़ियां रे | ||
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उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे | ||
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21:50, 29 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
बाबुल तुम बगिया के तरुवर, हम तरुवर की चिड़ियाँ रे
दाना चुगते उड़ जाएँ हम, पिया मिलन की घड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें, ज्यों मोती की लडियां रे
बाबुल तुम बगिया के तरुवर …….
आँखों से आँसू निकले तो पीछे तके नहीं मुड़के
घर की कन्या बन का पंछी, फिरें न डाली से उड़के
बाजी हारी हुई त्रिया की
जनम -जनम सौगात पिया की
बाबुल तुम गूंगे नैना, हम आँसू की फुलझड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ ज्यों मोती की लडियाँ रे
हमको सुध न जनम के पहले , अपनी कहाँ अटारी थी
आँख खुली तो नभ के नीचे , हम थे गोद तुम्हारी थी
ऐसा था वह रैन -बसेरा
जहाँ सांझ भी लगे सवेरा
बाबुल तुम गिरिराज हिमालय , हम झरनों की कड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे
छितराए नौ लाख सितारे , तेरी नभ की छाया में
मंदिर -मूरत , तीरथ देखे , हमने तेरी काया में
दुःख में भी हमने सुख देखा
तुमने बस कन्या मुख देखा
बाबुल तुम कुलवंश कमल हो , हम कोमल पंखुड़ियां रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे
बचपन के भोलेपन पर जब , छिटके रंग जवानी के
प्यास प्रीति की जागी तो हम , मीन बने बिन पानी के
जनम -जनम के प्यासे नैना
चाहे नहीं कुंवारे रहना
बाबुल ढूंढ फिरो तुम हमको , हम ढूंढें बावरिया रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे
चढ़ती उमर बढ़ी तो कुल -मर्यादा से जा टकराई
पगड़ी गिरने के दर से , दुनिया जा डोली ले आई
मन रोया , गूंजी शहनाई
नयन बहे , चुनरी पहनाई
पहनाई चुनरी सुहाग की , या डाली हथकड़ियां रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे
मंत्र पढ़े सौ सदी पुराने , रीत निभाई प्रीत नहीं
तन का सौदा कर के भी तो , पाया मन का मीत नहीं
गात फूल सा , कांटे पग में
जग के लिए जिए हम जग में
बाबुल तुम पगड़ी समाज के , हम पथ की कंकरियां रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे
मांग रची आंसू के ऊपर , घूंघट गीली आँखों पर
ब्याह नाम से यह लीला ज़ाहिर करवाई लाखों पर
नेह लगा तो नैहर छूता , पिया मिले बिछुड़ी सखियाँ
प्यार बताकर पीर मिली तो नीर बनीं फूटी अंखियाँ
हुई चलाकर चाल पुरानी
नयी जवानी पानी पानी
चली मनाने चिर वसंत में , ज्यों सावन की झाड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे
देखा जो ससुराल पहुंचकर , तो दुनिया ही न्यारी थी
फूलों सा था देश हरा , पर कांटो की फुलवारी थी
कहने को सारे अपने थे
पर दिन दुपहर के सपने थे
मिली नाम पर कोमलता के , केवल नरम कांकरिया रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे
वेद-शास्त्र थे लिखे पुरुष के , मुश्किल था बचकर जाना
हारा दांव बचा लेने को , पति को परमेश्वर जाना
दुल्हन बनकर दिया जलाया
दासी बन घर बार चलाया
माँ बनकर ममता बांटी तो , महल बनी झोंपड़िया रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे
मन की सेज सुला प्रियतम को , दीप नयन का मंद किया
छुड़ा जगत से अपने को , सिंदूर बिंदु में बंद किया
जंजीरों में बाँधा तन को
त्याग -राग से साधा मन को
पंछी के उड़ जाने पर ही , खोली नयन किवाड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे
जनम लिया तो जले पिता -माँ , यौवन खिला ननद -भाभी
ब्याह रचा तो जला मोहल्ला , पुत्र हुआ तो बंध्या भी
जले ह्रदय के अन्दर नारी
उस पर बाहर दुनिया सारी
मर जाने पर भी मरघट में , जल - जल उठी लकड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे
जनम -जनम जग के नखरे पर , सज -धजकर जाएँ वारी
फिर भी समझे गए रात -दिन हम ताड़न के अधिकारी
पहले गए पिया जो हमसे अधम बने हम यहाँ अधम से
पहले ही हम चल बसें , तो फिर जग बाटें रेवड़ियां रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे