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बारनि धूपि अँगारनि धूप कैँ धूम / मतिराम

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बारनि धूपि अँगारनि धूप कैँ धूम अँध्यारी पसारी महा है ।
आनन चँद समान उगो मृदु मँद हँसी जनु जोन्ह छटा है ।
फैलि रही मतिराम जहाँ तहाँ दीपति दीपनि की परभा है ।
लाल ! तिहारे मिलाप को बाल ने आजु करी दिन ही मे निसा है ।


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।