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बारिश की बूँदें / ओएनवी कुरुप

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गर्मियों से मुग्ध थी धरती
पर बारिश की बूँदें पड़ते ही
तुम बुदबुदाईं
"बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !"

क्या तुम्हारा मन
मिट्टी से भी ज़्यादा ठंड को महसूस करता है
तभी तो बारिश में विलीन हो गए
छलकते हुए आनंद को स्वीकार न कर
तुमने आहिस्ता से कहा
"बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !"

तुम्हारे आँगन में
बूँद-बूँद में
अपने अनगिनत चाँदी के तारों में
संगीत की सृष्टि कर
बारिश
जिप्सी लडकी की तरह नाचती है
तुम्हारी आँखों में ख़ुशी है, आह्लाद है
और शब्दों में बच्चों-सी पवित्रता
"बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !"

अपने इर्द-गिर्द की चीज़ों
से अनजान
तुम यहाँ बैठी हो
नदी तुम्हारी स्मृतियों में ज़िंदा है

अपनी सहेलियों के संग
धीरे से घाघरा उठाकर
तुम नदी पार करती हों
अचानक बारिश गिरती हैं
लहरें चाँदी के नुपूर पहन नाचती हैं

बारिश में भीगकर हर्षोन्माद में
हँसते हुए तुम
नदी तट पर पहुँचती हो

बारिश में भीगे आँवले के फूल
पगडंडी पर तुम्हारा स्वागत करते हैं
तुम्हारे सामने
केवल बारिश है, पगडंडी है
और फूलों से भरे खेत हैं !

मेरी उपस्थिति को भूलते हुए
तुमने मृदुल आवाज़ में कहा
"बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !"

फिर तुम्हें देखकर
मैंने उससे भी मृदुल आवाज़ में कहा
"तुम भी तो कितनी ख़ूबसूरत हो ! "

मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स