भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाल कविताएँ / भाग 10 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Kavita Kosh से
Rdkamboj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 13:19, 1 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: मेरा घोड़ा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ <br> {{ KKGlobal }}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा घोड़ा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’




रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


खेल- गीत


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~



मेरा घोड़ा

लम्बा –चौड़ा

बहुत अनाड़ी ।


खाकर पत्ती

मार दुलत्ती

खींचे गाड़ी ।


सरपट दौड़े

पीछे छोड़े

टीले झाड़ी ।


देखे –भाले

पोखर नाले

टीले झाड़ी ।

……………………

काली बिल्ली / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’




रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


खेल- गीत


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~



काली बिल्ली

छोड़ गाँव को

भागी-भागी

आई दिल्ली ।


दौड़ लगाई ,

लाल किले तक

मिला नहीं पर

दूध मलाई ।


दिन-भर भटकी ,

गली-गली में

चौराहों पर

आकर अटकी ।


अब यह आई,

बात समझ में-

जीभ चटोरी

है दुखदायी ।

………………………

देश हमारा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’




रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


बाल- गीत


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~



सुन्दर प्यारा

देश हमारा

बहे यहाँ

गंगा की धारा ।

शीश हिमालय

छूता अम्बर ,

धोता है पग

इसके सागर ।

है सबकी –

आँखों का तारा ।

इस पर अपने

प्राण लुटाएँ ,

हम सब इसका

मान बढ़ाएँ ।

‘भारत की जय !’

अपना नारा ।


………………………