भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बाल कविताएँ / भाग 13 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: '''जब सूरज जग जाता है''' आँखें मलकर धीरे-धीरे सूरज जब जग जाता है । सि...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' 
 +
|संग्रह=
 +
}}
 
'''जब सूरज जग जाता है'''
 
'''जब सूरज जग जाता है'''
  

19:05, 23 जून 2009 का अवतरण

जब सूरज जग जाता है

आँखें मलकर धीरे-धीरे

सूरज जब जग जाता है ।

सिर पर रखकर पाँव अँधेरा

चुपके से भग जाता है ।

हौले से मुस्कान बिखेरी

पात सुनहरे हो जाते ।

डाली-डाली फुदक-फुदक कर

सारे पंछी हैं गाते ।

थाल भरे मोती ले करके

धरती स्वागत करती है ।

नटखट किरणें वन-उपवन में

खूब चौंकड़ी भरती हैं ।

कल-कल बहती हुई नदी में

सूरज खूब नहाता है

कभी तैरता है लहरों पर

डुबकी कभी लगाता है ।