"बाल कविताएँ / भाग 7 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatBaalKavita}} | {{KKCatBaalKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | '''मेरे मामा''' | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | '''मेरे मामा''' | + | |
मेरे मामा | मेरे मामा | ||
− | + | बिल्कुल गामा । | |
− | बिल्कुल गामा । | + | पहने कुर्ता |
− | + | और पजामा ॥ | |
− | पहने कुर्ता | + | बड़े सवेरे |
− | + | हैं जग जाते । | |
− | और पजामा ॥ | + | पाँच मील तक |
− | + | बीसों केले | |
− | बड़े सवेरे | + | और चपाती । |
− | + | एक बार में | |
− | हैं जग जाते । | + | चट कर जाते ॥ |
− | + | मेरे मामा | |
− | पाँच मील तक | + | अच्छे मामा ॥ |
− | + | -0- | |
− | बीसों केले | + | |
− | + | ||
− | और चपाती । | + | |
− | + | ||
− | एक बार में | + | |
− | + | ||
− | चट कर जाते ॥ | + | |
− | मेरे मामा | + | |
− | + | ||
− | अच्छे मामा ॥ | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
'''आ भाई सूरज'''<br> | '''आ भाई सूरज'''<br> | ||
− | आ भाई सूरज- | + | आ भाई सूरज- |
− | + | उतर धरा पर | |
− | उतर धरा पर | + | ले आ गाड़ी |
− | + | भरकर धूप । | |
− | ले आ गाड़ी | + | आ भाई सूरज- |
− | + | बैठ बगल में | |
− | भरकर धूप । | + | तापें हाथ |
− | + | दमके रूप । | |
− | आ भाई सूरज- | + | आ भाई सूरज- |
− | + | कोहरा अकड़े | |
− | बैठ बगल में | + | तन को जकड़े |
− | + | थके अलाव । | |
− | तापें हाथ | + | आ भाई सूरज |
− | + | चुपके-चुपके | |
− | दमके रूप । | + | छोड़ लिहाफ़ |
− | + | अपने गाँव । | |
− | आ भाई सूरज- | + | |
− | + | ||
− | कोहरा अकड़े | + | |
− | + | ||
− | तन को जकड़े | + | |
− | + | ||
− | थके अलाव । | + | |
− | + | ||
− | आ भाई सूरज | + | |
− | + | ||
− | चुपके-चुपके | + | |
− | + | ||
− | छोड़ लिहाफ़ | + | |
− | + | ||
− | अपने गाँव । | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | -0- | |
− | + | '''धूप की चादर''' | |
− | तनिक न देखा मुड़कर ।< | + | घना कुहासा छा जाता है , |
+ | ढकते धरती अम्बर । | ||
+ | ठण्डी-ठण्डी चलें हवाएँ , | ||
+ | सैनिक जैसी तनकर । | ||
+ | भालू जी के बहुत मज़े हैं- | ||
+ | ओढ़ लिया है कम्बल । | ||
+ | सर्दी के दिन बीतें कैसे | ||
+ | ठण्डा सारा जंगल । | ||
+ | खरगोश दुबक एक झाड़ में | ||
+ | काँप रहा था थर-थर । | ||
+ | ठण्ड बहुत लगती कानों को | ||
+ | मिले कहीं से मफ़लर । | ||
+ | उतर गया आँगन में सूरज | ||
+ | बिछा धूप की चादर । | ||
+ | भगा कुहासा पल भर में ही | ||
+ | तनिक न देखा मुड़कर । | ||
+ | </poem> |
08:32, 25 जनवरी 2020 के समय का अवतरण
मेरे मामा
मेरे मामा
बिल्कुल गामा ।
पहने कुर्ता
और पजामा ॥
बड़े सवेरे
हैं जग जाते ।
पाँच मील तक
बीसों केले
और चपाती ।
एक बार में
चट कर जाते ॥
मेरे मामा
अच्छे मामा ॥
-0-
आ भाई सूरज
आ भाई सूरज-
उतर धरा पर
ले आ गाड़ी
भरकर धूप ।
आ भाई सूरज-
बैठ बगल में
तापें हाथ
दमके रूप ।
आ भाई सूरज-
कोहरा अकड़े
तन को जकड़े
थके अलाव ।
आ भाई सूरज
चुपके-चुपके
छोड़ लिहाफ़
अपने गाँव ।
-0-
धूप की चादर
घना कुहासा छा जाता है ,
ढकते धरती अम्बर ।
ठण्डी-ठण्डी चलें हवाएँ ,
सैनिक जैसी तनकर ।
भालू जी के बहुत मज़े हैं-
ओढ़ लिया है कम्बल ।
सर्दी के दिन बीतें कैसे
ठण्डा सारा जंगल ।
खरगोश दुबक एक झाड़ में
काँप रहा था थर-थर ।
ठण्ड बहुत लगती कानों को
मिले कहीं से मफ़लर ।
उतर गया आँगन में सूरज
बिछा धूप की चादर ।
भगा कुहासा पल भर में ही
तनिक न देखा मुड़कर ।