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बावड़ाचार / चंद्रप्रकाश देवल

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काया रै कोठलियै चापळियोड़ा
म्हारा चेता
क्यूं उडीकै-म्हारौ बावड़णौ
पाछौ घरां

वा नेह री धिरांणी
आपरै अंतस री आगळ उघाड़ै
तौ थारै आवूं
जांणै पाछौ पांखां बारै आवूं।