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"बिजलियाँ जो भी अब गिराएगा / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर
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+ | मस्अला ये सुलझ न पाएगा। | ||
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12:54, 27 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण
बिजलियाँ जो भी अब गिराएगा।
वो किसी तौर बच न पाएगा।
चाँद-तारे फ़लक से ग़ायब हैं,
कौन शब का बदन सजाएगा?
रिश्ता नाज़ुक है आग-पानी का,
कब समझ में बशर की आएगा?
मन लगाऊँ कहाँ मैं दुनिया में,
कब मुझे कोई ये बताएगा?
‘नूर’ उसको कहाँ तलाशें हम?
मस्अला ये सुलझ न पाएगा।