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बिन्दिया / अविनाश मिश्र

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वह तुम्हारा कोई स्वप्न थी
या अभिलाषा
या कोई आत्म-गौरव
या वह कोई बाधा थी
सूर्य, चन्द्रमा, नखत, समुद्र या पृथ्वी की तरह नहीं
एक रंग-बून्द की तरह प्रतिष्ठित —
तुम्हारे भाल पर