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बिम्ब दुहरे-तिहरे / रमेश रंजक

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दर्द तुमने गाया क्या गीत, अधभरे घाव हरे हो गए
स्मृति सावन के सरसे मेघ चाँदनी के नखरे हो गए

गए दिवसों का शैशव-सिन्धु
अचानक भर लाया तूफ़ान
नेह की हर बीमार तरंग
लगी जैसे हो गई जवान
द्रवित सूनेपन की भर बाँह बिम्ब दुहरे-तिहरे हो गए

परसों ऊषा की पहली किरन
किसी कागा के बिखरे बोल
सलज अभिलाषा ने चुपचाप
दिया अन्तर ने अमृत घोल
प्राण ! प्यासे सपनों के रंग इन्द्रधनु से गहरे हो गए

उठी हियतल की सोंधी गन्ध
एक आभा बिखरी सुनहरी
अधर से फिसला ही था नाम
डाल दी कम्पन ने चूनरी
स्मिति आँसू आँगन के बीच कर्ण जग के बहरे हो गए