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बिराणि छ्वीयूॅमां / सुरेश स्नेही

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ज्यू नि जलौण सुदि बिराणि छुयूॅमा,
कै दगड़ि सुदि नि लडणु बिराणि छ्वीयूमां,
 सोची समझी तैं देखि भालि तैं,
 सुदि कखि फाल नि मारणु बिराणि छ्वीयूमां।


कथग्युकि त आदत होन्दि, एक हैकैकि छ्वीं लगौणु,
लडैकि औरू तैं, अफु चट बौगु ह्वे जाणु,
 रंगत ऐ जान्दि ऊॅथैं कैथै लडौण मा,
 सुदि कखि फाल नि मारणु बिराणि छ्वीयूमां,

कथगि इन छन जौतैं अपड़ि फिकर नि, औरू देखि फुकेणा रैन्दिन,
कनु होणु खाणु च स्यू वे उकटौणैं सोचणा रैन्दिन,
 दिन मैना काटे जान्दिन ऊॅका औरू तैं उकटौण मा,
 सुदि कखि फाल नि मारणु बिराणि छ्वीयूमां।

कथगि सासु बार्युं लडै जान्दिन,
त कथगि द्वि झणौं भड़कै जान्दिन,
 कथग्यूंकि मवासी उकटिगिन इन्नी मां,
 सुदि कखि फाल नि मारणु बिराणि छ्वीयूमां।

कबिबि हो कखिबि हो, मेरि ंियं बात याद रख्या,
घौरै छ्वीं अपड़ि कै भैरवाला मां कबि नि बख्यां,

 कबि-कबि त छोट्टि सी बात बि, बिन्डि बड़ि बात ह्वे जान्द,
 छ्विं लगै छै जै मा तुमुन ,ऊतब तमाशबीन ह्वे जान्द,

तुमारी विपदा की द्वी बात, बढ़ैकि तै लगौन्दु ऊ हौर कैमा,
सुदि कखि फाल नि मारणु बिराणि छ्वीयूमां।