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"बीती सदी / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर

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नींद की नदी
 
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पसरी रही पूरी सदी पर
 
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जनपदों का इतिहास
 
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चलता रहा नींद में
 
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नींद में ही होता रहा जनसंहार
 
नींद में ही होता रहा जनसंहार
 
 
नींद में बदलते रहे
 
नींद में बदलते रहे
 
 
महानगर अपना रूप
 
महानगर अपना रूप
 
 
नींद में ही पहनते रहे मसखरे
 
नींद में ही पहनते रहे मसखरे
 
 
अपने रंग-बिरंगे मुखौटे
 
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•भी खाली नहीं रही गद्दी
कभी खाली नहीं रही गद्दी
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नींद में
 
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उस पर होते रहे
 
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हुक्काम ही अदल-बदल
 
हुक्काम ही अदल-बदल
 
 
अपने नये नये  
 
अपने नये नये  
 
 
परिवारों के साथ
 
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रेखाएँ लाँघ कर  
 
रेखाएँ लाँघ कर  
 
 
आते जाते रहे लोग
 
आते जाते रहे लोग
  
 
यह नींद सचमुच
 
यह नींद सचमुच
 
 
 
एक ऐसी नदी है
 
एक ऐसी नदी है
 
 
 
जिसका न कोई आदि है न अन्त
 
जिसका न कोई आदि है न अन्त
 
 
राजनीतिक गमलों में
 
राजनीतिक गमलों में
 
 
खिलती रहती हैं
 
खिलती रहती हैं
 
 
एक  से एक
 
एक  से एक
 
 
अलग-अलग रूप रंग की खुम्बियाँ
 
अलग-अलग रूप रंग की खुम्बियाँ
 
 
प्रजा बनती रहती
 
प्रजा बनती रहती
 
 
एक और दूसरे चुनाव के बाद सेतु
 
एक और दूसरे चुनाव के बाद सेतु
 
 
दुर्बल बनते हैं खाद
 
दुर्बल बनते हैं खाद
 
 
चलती रहती हैं
 
चलती रहती हैं
 
 
अमीरों की चक्कियाँ
 
अमीरों की चक्कियाँ
 
  
 
यही हुआ है  
 
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इस पिछली सदी में
 
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कोई नहीं रखता याद
 
कोई नहीं रखता याद
 
 
तहस-नहस करती
 
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आज भी बह रही है  
 
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अन्दर-ही-अन्दर
 
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यह नींद की नदी
 
यह नींद की नदी
 
 
बेबाक।
 
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02:10, 13 जनवरी 2009 का अवतरण

नींद की नदी
पसरी रही पूरी सदी पर
जनपदों का इतिहास
चलता रहा नींद में

नींद में ही होता रहा जनसंहार
नींद में बदलते रहे
महानगर अपना रूप
नींद में ही पहनते रहे मसखरे
अपने रंग-बिरंगे मुखौटे
•भी खाली नहीं रही गद्दी
नींद में
उस पर होते रहे
हुक्काम ही अदल-बदल
अपने नये नये
परिवारों के साथ
रेखाएँ लाँघ कर
आते जाते रहे लोग

यह नींद सचमुच
एक ऐसी नदी है
जिसका न कोई आदि है न अन्त
राजनीतिक गमलों में
खिलती रहती हैं
एक से एक
अलग-अलग रूप रंग की खुम्बियाँ
प्रजा बनती रहती
एक और दूसरे चुनाव के बाद सेतु
दुर्बल बनते हैं खाद
चलती रहती हैं
अमीरों की चक्कियाँ

यही हुआ है
इस पिछली सदी में
कोई नहीं रखता याद
तहस-नहस करती
आज भी बह रही है
अन्दर-ही-अन्दर
यह नींद की नदी
बेबाक।