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बुतरु / मुनेश्वर ‘शमन’

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सुविधा कम्मे ढेर-ढेर बस
प्यार दा अप्पन बुतरून के।
पइसा में नञ परकाबऽ,
पुचकारा दा अप्पन बुतरुन के ।

इनकर नाजुक तन-मन हे।
बहुते कोमल भावुक जियरा।
पुरगर सनेह के भरला से।
लड़य अन्हेरा से दीयरा|
खिलय जेमें ई फूल, ऊ
हवा-बेआर दा अप्पन बुतरून के ।

टेढ़-मेढ़ हे चाल समय के,
आपाधापी हे पसरल।
अपने ही धुन में भुलाल सब
धन के माया हे ब्यापल।
भागमभाग से बखत चोरा के,
धार दा अप्पन बुतरून के।
खेल धूप के अभाव में तो,

टी॰भी॰ से सटबे करतइ।
चाहे जे भी लाभ अरज ले।
खमियाजा भरबे कर तइ।
जुगुत –जतन से नीक नियर,
आकार दा अप्पन बुतरून के।

हेरा रहल हे बचपन अखनी,
जीअइ के ढंगे अइसन।
बस्ता के बोझा भारी, आसा-
उमेद कइसन- कइसन।
पैर जमाबे ले बढ़िया
आधार दा अप्पन बुतरून के।

उचित देखभाल बिन बच्चा,
अनगढ़-धूसर हो जाहे।
बिना प्यार के सँउसे जिनगी,
ऊसर-बंजर हो जाहे।
सुन्नर सपना देखय के,
संसार दा अप्पन बुतरून के।