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बेआबरू जिस दर से निकाले हुए हैं हम / रवि सिन्हा

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बेआबरू जिस दर से निकाले हुए हैं हम 
ख़्वाहिश उसी क’ ख़ैर की पाले हुए हैं हम 

जिस ख़ाक के पुतले हैं रगों में उसी का ज़ोर 
मिट्टी के हुक्म को मगर टाले हुए हैं हम

धरती ने अपनी कोख से ख़ारिज हमें किया 
पर आसमाँ के बीज को पाले हुए हैं हम

उभरा है एक अजनबी ख़ुद के वजूद से 
जिसका मकाँ है उसको निकाले हुए हैं हम

जिस बात पे रहा है ज़माने को ऐतिराज़ 
तहतुश-शुऊर<ref>अवचेतन (subconscious)</ref> में वही डाले हुए हैं हम

ज़ाहिर जो चश्म उससे तो देखें हैं कायनात 
बातिन जो चश्म<ref>अन्दरूनी आँख (inner eye)</ref> उससे निराले हुए हैं हम

साग़र<ref>शराब का प्याला (wine-cup)</ref> वही के जिससे सभी रिन्द<ref>शराबी (drunkard)</ref> पी रहे 
गो अपने में कुछ और ही ढाले हुए हैं हम

अहवाल<ref>घटनाएँ, हालात (events, circumstances)</ref> ने पलट दिया जिनको पढ़े बग़ैर 
तारीख़<ref>इतिहास (history)</ref> के वो सफ़्हे<ref>पन्ने (pages)</ref> सँभाले हुए हैं हम

आतिश<ref>आग (fire); reference in the last sher to Prometheus who stole fire from the gods and was punished for it.</ref> वो और जिसको चुराना गुनाह था 
आतिश ये और जिसके हवाले हुए हैं हम

शब्दार्थ
<references/>