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बेग़रज़ बेलौस इक रिश्ता भी होना चाहिए / शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
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बेग़रज़ बेलौस इक रिश्ता भी होना चाहिए
ज़िंदगी में कुछ न कुछ अच्छा भी होना चाहिए
बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए
ये हक़ीक़त के गुलों पर ख़्वाब की कुछ तितलियाँ
’ऐसा होना चाहिए। वैसा भी होना चाहिए’
हो तो जाती हैं ये आँखें नम किसी भी बात पर
हां मगर पलकों पे इक सपना भी होना चाहिए
दोस्ती के आईने में देख सब शाहिद मगर
माँ के आँचल-सा कोई पर्दा भी होना चाहिए